Friday, April 19, 2019

रोहित शेखर की मौत सामान्य नहीं, अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज

नई दिल्ली. उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर की मौत सामान्य नहीं थी। शुक्रवार को रोहित की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई। इसके बाद मामले की जांच दिल्ली क्राइम ब्रांच को सौंपी गई। रोहित की संदिग्ध मौत के मामले में अज्ञात के खिलाफ हत्या की धारा में केस दर्ज किया गया है। पुलिस के मुताबिक, 16 अप्रैल को रोहित को साकेत स्थित मैक्स अस्पताल लाया गया था, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था।

पुलिस ने कहा था कि रोहित की नाक से खून निकल रहा था। इस बात की जानकारी नौकर ने उसकी मां उज्ज्वला तिवारी को दी थी। रोहित की मां घर पर नहीं थीं। वह चेकअप के लिए अस्पताल गई हुई थीं। हालांकि, उज्ज्वला ने कहा था कि बेटे की मौत स्वाभाविक है। मुझे इसमें कोई भी शक नहीं है। मैं रोहित की मृत्यु के कारणों का खुलासा बाद में करूंगी कि किन हालत में ऐसा हुआ।

2014 में एनडी तिवारी ने रोहित को अपना बेटा स्वीकार किया था
रोहित अपने पिता एनडी तिवारी के साथ लंबे समय तक चले पितृत्व विवाद को लेकर चर्चा में आए थे। वे लंबे समय तक रोहित को अपना बेटा मानने से इनकार करते रहे थे। 2014 में तिवारी ने अदालत के आदेश के बाद रोहित को अपना बेटा स्वीकार कर लिया था। एनडी तिवारी का 93 वर्ष की आयु में 18 अक्टूबर 2018 को निधन हो गया था।

मैनपुरी. उत्तर प्रदेश में 24 साल बाद सपा नेता मुलायम सिंह यादव और बसपा प्रमुख मायावती एक मंच पर नजर आए। मैनपुरी में दोनों दलों की संयुक्त रैली में मायावती ने मुलायम के लिए प्रचार किया। मायावती ने कहा- मुलायम सिंह जी असली, वास्तविक हैं। वे भाजपा की तरह नकली या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह फर्जी रूप से पिछड़े वर्ग के नहीं हैं। मुलायम को मैनपुर में आप रिकॉर्ड तोड़ वोटों से जिताएं।

वहीं, मुलायम सिंह ने इस रैली में मायावती का आभार जताया। कहा- बहुत दिनों बाद साथ आने के लिए मायावतीजी का अभिनंदन करता हूं। उम्मीद है कि सपा-बसपा का गठबंधन राज्य में भारी मतों से जीतेगा। आज मायावतीजी आई हैं। उनका हम स्वागत करते हैं, आदर करते हैं। मायावती जी का बहुत सम्मान करना हमेशा, क्योंकि समय जब भी आया है, मायावती जी ने हमारा साथ दिया है। हमें खुशी है कि हमारे समर्थन के लिए वे आईं हैं।

चौकीदारी की नाटकबाजी भी मोदी को नहीं बचा पाएगी- मायावती

मायावती ने कहा, "नकली पिछड़ा व्यक्ति कभी भी देश भला नहीं कर सकता। नकली पिछड़े लोगों से धोखा खाने की जरूरत नहीं है। असली-नकली कौन है, इसकी पहचान कर ही अपने गठबंधन को कामयाब बनाना है। पिछड़ों के असली नेता मुलायम जी को ही चुनकर भेजना है।'

"आजादी के बाद काफी लंबे समय तक देश में ज्यादातर सत्ता कांग्रेस और उसके बाद भाजपा या अन्य पार्टियों के हाथ में रही। भाजपा की संकीर्णवादी, सांप्रदायिक नीतियों की वजह से उनकी सरकार वापस चली जाएगी। उनकी चौकीदारी की नाटकबाजी भी नहीं बचा पाएगी।'

Monday, April 15, 2019

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड : क्यों चलाई डायर ने गोली?

जलियाँवाला बाग़ नरसंहार को व्यापक रूप से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जाता है, जिसने "अंग्रेजी राज" का क्रूर और दमनकारी चेहरा सामने लाया, अंग्रेजी राज भारतीयों के लिए वरदान है, उसके इस दावों को उजागर किया.

कई इतिहासकारों का मानना है कि इस घटना के बाद भारत पर शासन करने के लिए अंग्रेजों के "नैतिक" दावे का अंत हो गया.

इस घटना ने सीधे तौर पर एकजुट राजनीति के लिए भारतीयों को प्रेरित किया, जिसका परिणाम भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के रूप में देखा गया.

यहां तक की कहानी इतिहास के किताबों में दर्ज है. कैसे महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट के ख़िलाफ़ देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था, जिसके बाद मार्च के अंत और अप्रैल की शुरुआत में कई हिस्सों में बड़े पैमाने प्रदर्शन हुए और उसका परिणाम 13 अप्रैल 1919 के नरसंहार के रूप में दिखा.

हालांकि समझने वाली बात यह है कि कैसे और क्यों यह नरसंहार ने देशव्यापी आंदोलन का अंतिम केंद्र बना. पंजाब ने सबसे ज़्यादा प्रदर्शन और क्रूर उत्पीड़न देखा था, जिसमें कम से कम 1200 लोग मारे और 3600 घायल हुए थे.

पंजाब को अंग्रेजी हुकूमत का गढ़ माना जाता था, जो इस बात पर गर्व करता था कि उसने राज्य में कॉलोनियों और रेलवे का विकास कर वहां समृद्धि लाई. भारतीय सेना में यहां के लोगों का योगदान भी महत्वपूर्ण था.

हालांकि इस विकास के लिबास की आड़ में अंग्रेजी हुकूमत ने उन सभी उठने वाली आवाज़ों को क्रूरता से कुचलना चाहती थी और यह 1857 के विद्रोह, 1870 के दशक के कूका आंदोलन और साथ ही 1914-15 के ग़दर आंदोन के दौरान देखने को मिला.

आयरलैंड की जमींदार पृष्ठभूमि से आने वाले ओडायर ब्रितानी औपनिवेश के अधिकारी वर्ग से जुड़े शिक्षित, लोगों, व्यापारियों और साहूकारों के ख़िलाफ़ सोच रखते थे. और वो किसी भी राजनीतिक असंतोष को पहले ही अवसर में कुचल देते थे.

जनरल ओ डायर को साल 1913 में पंजाब के लाला हरकिशन लाल के पीपुल्स बैंक की बर्बादी के लिए भी दोषी माना गया. इसके चलते लाहौर के व्यापारियों और ख़ासतौर पर शहरी इलाके में रहने वाले लोगों का सबकुछ लुट गया. उनकी सारी बचत पानी फिर गया. साल 1917-1919 के दरम्यान क़ीमतो में भारी उछाल आया. मज़दूरी के मानकों में गिरावट आ गई, निचले पायदान पर खड़े मज़दूर और पीछे धकेल दिये गए और इसका नतीजा ये हुआ कि कामगार और कारीगर घोर तंगी में घिर गए.

अमृतसर में तो मुस्लिम कश्मीरी कारीगरों के मुख्य आहार, चावल की क़ीमत तीन गुनी बढ़ गई. इन सारी बातों का असर ये हुआ कि धीरे-धीरे ही सही पर लोग लामबंध होने लगे. इन लोगों में युवा मुसलमानों के साथ-साथ ब्रिटिश विरोधी मध्यमवर्गीय मुस्लिम वर्ग भी था. व्यापार और उद्योग तितर-बितर हो रहे थे. राम सरन दत्त, गोकुल चंद नारंग, सैफ़ुद्दीन किचलू, अली ख़ान जैसे बहुत से राजनीतिक विचारक सामने आए, जिन्होंने ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की. लेकिन इसी दौरान साल 1918 में वो समय भी आया जब एंफ़्लुएंज़ा और मलेरिया जैसी महामारी ने हज़ारों लोगों की जान ले ली.

फरवरी साल 1919 के अंत में जब रॉलेट बिल आया तो उसका व्यापक विरोध हुआ और इन सभी घटनाक्रमों की वजह से पंजाब इस विरोध में सबसे आगे था. रॉलेट एक्ट के ख़िलाफ़ हुआ आंदोलन भारत का पहला अख़िल भारतीय आंदोलन था और इसी आंदोलन ने महात्मा गांधी को 'नेशनल फ़िगर' के तौर पर स्थापित किया. इसके बाद ही महात्मा गांधी ने एक सत्याग्रह सभा का गठन किया और ख़ुद पूरे देश के दौरे पर निकल गए ताकि लोगों को एकजुट कर सकें.

हालांकि गांधी कभी भी पंजाब का दौरा नहीं कर सके. वो पंजाब प्रांत में प्रवेश करने ही जा रहे थे लेकिन इसके ठीक पहले नौ अप्रैल को उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और वापस भेज दिया गया. इसके अलावा इस प्रांत में कांग्रेस भी इतनी मज़बूत नहीं थी, इसके परिणामस्वरूप यह कार्यक्रम बड़ा ही प्राथमिक स्तर का रहा और इसे कुचल दिया गया. हालांकि इससे पहले फरवरी महीने की शुरुआत में भी अमृतसर और लाहौर शहरों में सरकार विरोधी सभाएं हुई थीं. लेकिन ये सभाएं बेहद स्थानीय मुद्दों जैसे प्लेटफ़ॉर्म टिकट, चुनाव को लेकर थीं. इनमें रॉलेट एक्ट और ख़िलाफ़त के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई थी.

देश के अधिकांश शहरों में 30 मार्च और 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया. हालांकि इस हड़ताल का सबसे ज़्यादा असर पंजाब के ही अमृतसर, लाहौर, गुजरांवाला और जालंधर शहर में देखने को मिला. लाहौर और अमृतसर में हुई जन-सभाओं में तो पच्चीस से तीस हज़ार तक लोग शामिल हुए.

9 अप्रैल को राम नवमी के दिन लोगों ने एक मार्च निकाला. राम नवमी के मौक़े पर निकले इस मार्च में हिंदू तो थे ही मुस्लिम भी शामिल हुए. मुस्लिमों ने तुर्की सैनिकों जैसे लिबास पहन रखे थे. बड़ी संख्या में लोग तो जमा हुए ही थे लेकिन जनरल डायर और उनके प्रशासन को सबसे अधिक चिंता हिंदू-मुस्लिम एकता देखकर हुई.

किसी भी विरोध को कुचलने के लिए हमेशा आतुर रहने वाले पंजाब के गवर्नर डायर ने उसी दिन अमृतसर के लोकप्रिय नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन को अमृतसर से निर्वासित करने का फ़ैसला किया और ठीक उसी दिन गांधी को भी पंजाब में घुसने नहीं दिया गया और पलवल वापस भेज दिया गया.

अपने नेताओं के निर्वासन की ख़बर ने अमृतसर के लोगों को गुस्से से भर दिया. क़रीब पचास हज़ार की संख्या में लोग जुटे और दस अप्रैल को अपने नेताओं की रिहाई की मांग करते हुए उन्होंने सिविल लाइन्स तक मार्च निकाला. इस मार्च के दौरान सैनिकों से उनकी मुठभेड़ भी हुई. पथराव और गोलीबारी हुई जिसमें कई लोगों की मौत भी हो गई. गुस्साई भीड़ शहर वापस तो आ गई लेकिन उनके अंदर हलचल मची हुई थी. उन्होंने ब्रिटिश अथॉरिटी से संबद्ध प्रतीकों मसलन बैंक, रेलवे स्टेशन और चर्च में तोड़फोड़ शुरू कर दी. पांच गोरे जिनमें से तीन बैंक कर्मचारी थे और एक रेलवे गार्ड था, मारे भी गए. इस हिंसक आंदोलन का नेतृत्व मुख्य तौर पर हिंदू, सिख खत्री और कश्मीरी मुसलमान कर रहे थे.

ठीक उसी दिन जालंधर के ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड डायर को आदेश दिया गया कि वो इन हिंसक घटनाओं को संभालने के लिए फ़ौरन अमृतसर पहुंचें. नागरिक प्रशासन ढह चुका था और ऐसे में संभवत: डायर को परिस्थितियों को नियंत्रण में करने के लिए बुलाया गया था.

जलियांवाला बाग़ में उस दिन क्या हुआ, आज हर किसी को मुंहज़बानी पता है. 13 अप्रैल को लगभग शाम के साढ़े चार बज रहे थे, जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद क़रीब 25 से 30 हज़ार लोगों पर गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया. वो भी बिना किसी पूर्व चेतावनी के. ये गोलीबारी क़रीब दस मिनट तक बिना सेकंड रुके होती रही. जनरल डायर के आदेश के बाद सैनिकों ने क़रीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं. गोलियां चलाते-चलाते चलाने वाले थक चुके थे और 379 ज़िंदा लोग लाश बन चुके थे. (अनाधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि क़रीब एक हज़ार लोगों की मौत हुई थी).

डायर का जन्म भारत में ही हुआ था और उनके पिता शराब बनाने का काम करते थे. डायर को उर्दू और हिंदुस्तानी दोनों ही भाषाएं बहुत अच्छे से आती थीं. डायर को उसके लोग तो बहुत अच्छी तरह जानते थे लेकिन उसके वरिष्ठ अधिकारियों में उसकी कोई बहुत अच्छी साख नहीं थी. इतिहास में डायर का नाम अमृतसर के कसाई के तौर पर है और ऐसा न केवल राष्ट्रवादी बल्कि इंपीरियलिस्ट भी मानते है. उनके निर्मम कृत्य को भारत में अंग्रेजों की मौजूदी के अपवाद के तौर पर देखा जाता है.

हालांकि बाद में आधिकारिक हंटर कमीशन की जांच और अनाधिकारिक तौर पर हुई कांग्रेस की जांच में पाया गया कि जनरल डायर इस तरह की सोच रखने और सोच को अंजाम देने वाला अपने ही तरह का अकेला शख़्स था. हंटर कमीशन के सामने डायर ने माना था कि उन्होंने लोगों पर मशीन गन का इस्तेमाल किया और बाग़ के लिए एक संकरा सा रास्ता था और सैनिकों को आदेश दिया गया कि वो जिस ओर ज़्यादा संख्या में लोगों को देखें उधर फ़ायर करें. जब फ़ायरिंग बंद हो गई तो वहां न घायलों के लिए मेडिकल की व्यवस्था थी और न लाशों के अंतिम कर्म की. उन्हें व्यापक रूप से "ब्रिटिश साम्राज्य के उद्धारकर्ता" के रूप में सम्मानित किया गया था.

किसी ब्रिटिश अधिकारी द्वारा व्यक्तिगत तौर पर की गई यह निर्मम सामूहिक हत्या अपने आप में पहली घटना थी. हिंसा, क्रूरता और राजनीतिक दमन ब्रिटिश राज में पहली बार नहीं हुआ था और न ही ये अपवाद था लेकिन यह अपने आप में एक अलग स्तर की क्रूरता थी.

Monday, April 8, 2019

छात्रों के बीच पैसे देकर नकल कराने का चलन क्यों बढ़ रहा है?

क्रिस ने पहली बार जब किसी दूसरे के लिए निबंध लिखा तो इसके बदले में उन्हें खाना खिलाया गया था.

उनके एक दोस्त ने अपनी गर्लफ्रेंड के लिए मदद मांगी थी तो क्रिस उसके निबंध को पढ़ने और कुछ सुधार करने के लिए राज़ी हो गए थे.

लेकिन निबंध को संपादित करने भर से काम नहीं चलने वाला था. उसमें दिए गए तर्क गड्ड-मड्ड थे, इसलिए उन्हें पूरा निबंध दोबारा लिखना पड़ा.

क्रिस का निबंध अच्छा बन गया और उस लड़की को अच्छे ग्रेड मिल गए. उनका दोस्त भी खुश हो गया.

वह कहते हैं, "उसने सिंगापुर में मुझे हॉटपॉट (एक तरह की चीनी खाना) खिलाया. तब मैं पहली बार किसी हॉटपॉट रेस्तरां में गया था."

क्रिस के दोस्त ने दूसरे असाइनमेंट में भी उस लड़की की मदद करने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया.

क्रिस ने कहा कि वह रोज हॉटपॉट नहीं खा सकते. उन्हें इसके पैसे चाहिए.

वह कहते हैं, "फिर उस लड़की ने मुझे अपने सहपाठियों से मिलवाया और इस तरह सब कुछ शुरू हुआ."

निबंध मिल (कारखाना)

क्रिस अब अपना "निबंध मिल" चलाते हैं. वो कहते हैं कि यह फ़ायदे का धंधा है, जिसमें उन छात्रों के असाइनमेंट लिखे जाते हैं जो ख़ुद से अपना काम पूरा नहीं कर सकते.

अमरीका में कॉलेज एडमिशन का स्कैंडल दुनिया भर में सुर्खियां बना तो छात्रों की नकल की तरफ लोगों का ध्यान गया.

यह इस तरह का कोई पहला स्कैंडल नहीं था. भारत में मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की परीक्षा में बड़े पैमाने पर हुई धोखाधड़ी के मामले अब भी उजागर हो रहे हैं.

सिर्फ़ दाखिले की परीक्षाओं में ऐसा नहीं हो रहा. विश्वविद्यालयों में दाखिला पा जाने के बाद भी कुछ छात्रों को समस्याएं रहती हैं. वहां क्रिस जैसे लोगों की भूमिका शुरू होती है.

सही या गलत
कई साल तक सिंगापुर में पढ़ाई करने के बाद क्रिस अब चीन लौट आए हैं.

वह निबंध लिखते हैं और ऑस्ट्रेलिया से लेकर ब्रिटेन तक फैले अपने छात्र ग्राहकों से मिले काम को ठेके पर भी कराते हैं.

क्रिस का सालाना कारोबार डेढ़ लाख डॉलर से अधिक का है. यह कारोबार तब फैला था जब उनकी एक छात्र मास्टर डिग्री करने ऑस्ट्रेलिया गई और उसने वहां दूसरे लोगों को क्रिस के बारे में बताया.

वह हर हफ्ते कम से कम एक निबंध ख़ुद लिखते हैं. इसके अलावा व्यापार से लेकर वित्त तक के विषयों पर मिले काम को ठेके पर विशेषज्ञों के पास भेज देते हैं.

वह प्रति शब्द एक आरएमबी लेते हैं. इस तरह 1,000 शब्दों का निबंध करीब 1,000 आरएमबी (115 पाउंड या 150 डॉलर) में तैयार होता है.

क्रिस अपना पूरा नाम नहीं बताते. उनको लगता है कि वह जो करते हैं वह सिखाने और नकल कराने के बीच की चीज़ है.

वह कहते हैं, "मैं छात्रों से हमेशा कहता हूं कि आप मेरे निबंध का उल्लेख कर सकते हैं लेकिन इसे सीधे अपने प्रोफेसर को नहीं दे सकते."

"लेकिन वे क्या करते हैं उस पर मेरा नियंत्रण नहीं है. कुछ छात्र वास्तव में मुझसे सीखते हैं, इसलिए मुझे लगता है कि यह ग्रे एरिया में है."

कभी-कभी वह मना भी करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते.

क्रिस कहते हैं, "मैं ख़ुद से यह कहता हूं कि मुझे यह बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह धोखाधड़ी है. वे मुझसे कुछ नहीं सीखते. फिर एक महीने बाद उनका फोन आता है और वे कहते हैं कि क्या मैं फिर उनकी मदद कर सकता हूं क्योंकि ग्रैजुएट बनने के लिए यह असाइनमेंट पास करना जरूरी है."

"फिर मैं हां कर देता हूं, साथ ही यह भी कहता हूं कि यदि ऐसा है तो मैं यह आखिरी बार कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि वे कुछ सीखें लेकिन यह बहुत मुश्किल है.

तकनीक का सहारा
ब्रिटेन की क्वालिटी एश्योरेंस एजेंसी के गैरेथ क्रॉसमैन यहां छात्रों की गलती मानते हैं. उनका कहना है कि इस तरह धोखाधड़ी करने वाले छात्र न सिर्फ़ अपनी शिक्षा को कम कर रहे हैं, बल्कि समाज को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं.

गैरेथ क्रॉसमैन कहते हैं, "वह धोखा दे रहे हैं. कोई नहीं चाहेगा कि ऐसे लोगों को बाद में काम मिले जो किसी योग्य नहीं हैं."रॉयल कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग ने इस पर अपनी चिंता जताई है और नर्सें भी बिना योग्यता के बाहर आ रही हैं.

क्रॉसमैन कहते हैं, "मुझे लगता है कि संस्थान भी इस बात को मान रहे हैं कि इससे उनकी साख जुड़ी हुई है इसलिए इससे निपटने की जरूरत है."

पिछले साल स्वानसी यूनिवर्सिटी ने एक रिसर्च प्रकाशित किया था जिसके मुताबिक दुनिया भर में हर 7 में 1 छात्र इस तरह की धोखाधड़ी में शामिल हो सकता है.

क्रॉसमैन का कहना है कि ऐसा पहले भी होता रहा है. तकनीकी विकास ने इसे व्यापक बना दिया है और निबंध मिल तकनीक का दोहन कर रहे हैं.

वह कहते हैं, "जब हम सोशल मीडिया साइटों पर जाते हैं तो वहां विज्ञापन पॉप-अप होते रहते हैं. वे हमारी रुचि का अंदाज़ा लगाकर विज्ञापन दिखाते हैं. निबंध मिलों के साथ भी ऐसा ही है."

Friday, April 5, 2019

कोलकाता-बेंगलुरु का मैच आज, सीजन में पहली जीत दर्ज करने पर कोहली की नजर

खेल डेस्क. आईपीएल के 17वें मुकाबले में शुक्रवार को एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु का मुकाबला कोलकाता नाइटराइडर्स से होगा। कोलकाता की टीम तीन में से दो मैच में जीत दर्ज कर चुकी हैं। उसे दिल्ली कैपिटल्स के खिलाफ पिछले मैच में सुपर ओवर में हार मिली थी। दूसरी ओर, विराट कोहली की कप्तानी वाली बेंगलुरु की टीम का अभी तक जीत का खाता भी नहीं खुला है। टीम चार मैच खेली, लेकिन एक भी नहीं जीत पाई। कोहली की टीम इस मैच को अपने नाम कर पहली जीत दर्ज करना चाहेगी। अंक तालिका में कोलकाता की टीम चौथे और बेंगलुरु 8वें स्थान पर है।

बेंगलुरु के खिलाफ कोलकाता का सक्सेस रेट 60%
दोनों टीमों के बीच अब तक कुल 23 मुकाबले खेले जा चुके हैं। इनमें कोलकाता की टीम ने 14 में जीत हासिल की। वहीं, बेंगलुरु सिर्फ नौ में ही जीत मिली। दोनों टीमों के बीच पिछले पांच मुकाबलों की बात करें तो चार में कोलकाता नाइटराइडर्स ही जीती है। बेंगलुरु को पिछली जीत 2016 में मिली थी।

बेंगलुरु में मेजबान टीम से ज्यादा मैच कोलकाता ने जीते
एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम पर दोनों टीमों के बीच अब तक कुल 10 मैच हुए। इनमें छह कोलकाता और चार बेंगलुरु ने जीते। विराट की टीम को कोलकाता के खिलाफ इस मैदान पर पिछली जीत 2015 में मिली थी। उसके बाद तीन बार लगातार हार का सामना करना पड़ा है।

बेंगलुरु : विराट कोहली (कप्तान), पार्थिव पटेल, एबी डिविलियर्स, कॉलिन डी ग्रैंडहोम, उमेश यादव, युजवेंद्र चहल, मोईन अली, शिमरॉन हेटमायर, शिवम दुबे, मोहम्मद सिराज, नवदीप सैनी, देवदत्त पल्लीकल, हिम्मत सिंह, मिलिंद कुमार, गुरकीरत सिंह मान, हेनरित क्लासेन, पवन नेगी, वॉशिंगटन सुंदर, अक्षदीप नाथ, प्रयास राय बर्मन, कुलवंत खेजरोलिया, टिम साउदी।

कोलकाता : दिनेश कार्तिक (कप्तान), रॉबिन उथप्पा, क्रिस लिन, शुभमन गिल, आंद्रे रसेल, कार्लोस ब्रैथवेट, सुनील नरेन, पीयूष चावला, कुलदीप यादव, नीतीश राणा, निखिल नाइक, जोए डेनली, श्रीकांत मुंडे, संदीप वारियर, प्रसिद्ध कृष्णा, लॉकी फर्गुसन, हैरी गर्नी, केसी करियप्पा, यारा पृथ्वीराज।

मोदी: जब हम हमने गठबंधन किया तब मुफ्ती मोहम्मद सईद थे। गठबंधन मिलावटी साबित हुआ। हमने सरकार चलाने की कोशिश की। महबूबा जी के काम करने का तरीका अलग है। हमारा मत था कि जम्मू-कश्मीर में स्थानीय निकाय के चुनाव होने चाहिए। पंचायतों को पैसे दिए जाने चाहिए। वे नहीं चाहते थे कि पंचायतों की ताकत बढ़े। उन्होंने डर पैदा करने की कोशिश की कि चुनाव होने पर हत्याएं होंगी। इसके बाद हम अलग हो गए। हमारी कोशिश थी कि गठबंधन में अच्छा करें।

सवाल: कश्मीर को बेहतर ढंग से हैंडल करना चाहिए था, इसमें क्या सरकार असफल रही?
मोदी: जब हम जम्मू कश्मीर की बात करते हैं तो हमें घाटी, लद्दाख की भी बात करनी चाहिए थी। वहां घटनाएं कम हो रही है। जम्मू-कश्मीर के हर घर में बिजली और शौचालय की सुविधा उपलब्ध हो गई। कृषि, खादी व्यवसाय में वृद्धि हुई। अमरनाथ, वैष्णो देवी के पर्यटक बढ़ रहे हैं। स्पोर्ट्स में वहां के बच्चे अच्छा कर रहे हैं। अलगाववादियों के प्रति नरमी अब सही नहीं होगी। हम उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। दो-तीन जिलों में ही वे सक्रिय हैं। वहां से भी हटाया जाएगा।

सवाल: पाकिस्तान को लेकर क्या सोचते हैं?
मोदी: मेरा काम भारत के हितों की रक्षा करना है, पाकिस्तान चलाना मेरी जिम्मेदारी नहीं। पाकिस्तान में पता ही नहीं चलता कि देश कौन चलाता है। सेना, आईएसआई, चुनी हुई सरकार या पाक से भागे हुए लोग देश चलाते हैं। यह भी पता नहीं चलता कि बात किससे करें? वे आतंक का निर्यात करना बंद करें। चीन का साथ हमारे सीमा विवाद है, लेकिन व्यवसाय और राजनीतिक बातें होती हैं।